कुछ आपिए चिल्ला रहे हैं कि राजस्थान DCW के अधिकारी बलात्कार के आरोपी के साथ सेलफ़ी ले रहे हैं, फिर भी कोई FIR नहीं, जबकि स्वाती मालीवाल के विरुद्ध FIR है।
पता नहीं ये आपिए कब समझेंगे कि संविधान और कानून मात्र उन लोगों के लिए होता है जिन से भ्रष्ट सरकार को ख़तरा हो।
व्यापम वाले मंत्री पद पर अब तक बिराजे हैं, पनामा वाले चैन से सो रहे हैं, एक बलातकारी के चरित्रहीनता के कारण "आसा" के साथ "राम" लिखना भी अनुचित लगता है, और गजब तो यह है कि अब तक "सवामी" जैसे पवित्र शब्द को उसके नाम से जोड़ कर अपवित्र किया जारहा है। और आप मात्र एक सेलफ़ी के लिए FIR की अपेक्षा करते हैं। पगला गए हैं का?!
सच तो यह है कि यह सब को पता है। फिर भी नहीं मानेंगे। क्यूंकि अब राजनीति ही ऐसी है।
इस राजनीति को जो अब तक लोकशाही समझते हैं वह अब तक लॉलीपॉप खाने वाले दौर में हैं। अभी इनका अंगूठा चूसने वाला समय समाप्त नहीं हुआ है।
आप मानें या ना मानें अब भारत तानाशाह बन चुका है। जहां सत्तारूड़ दल का प्रमुख ही सब कुछ होता है। पोलिस, सेना, और न्यायालय तक इनके साथ दिखाई देते हैं। भला ऐसी स्थिति में मीडिया कैसे इस दल के विरुद्ध हो। उसे भी तो अपनी रोज़ी रोटी की चिंता है।
यह सब मैं यूंही नहीं कह रहा हूं। आप भले ही मुझे भाजपा विरोधी होने का दोषी मानें, लेकिन तथ्य तो यही बता रहे हैं।
मैं उदाहरण स्वरूप कुछ घटनाओं के बारे में बताऊंगा। फिर यातो आप मुझे दलील देकर मना लीजिए, या फिर आप भी मान लीजिए। वरना हमें मानना पड़ेगा कि आप भी एक अंधभक्त हैं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के एक नेता को मात्र इस लिए गिरफ़तार कर लिया कि उन्होंने अपने दसतावेज़ में अपने विश्वविद्यालय का पूर्ण नाम नहीं लिखा था। लेकिन केंद्रीय मंत्री स्मृति ज़ुबीन ईरानी समेत अन्य बहुत से नेताओं की डिगरी ही फरज़ी बताई गई है। लेकिन अब तक वह अपने अपने पदों पर बिराजमान हैं!
दिल्ली के ही एक मंत्री पर भ्रष्टाचार का मात्र आरोप लगा, बस वावेला मच गया। उन्हें मंत्री पद से निकलना पड़ा। लेकिन व्यापम जैसे महाघोटाले के आरोपी अब तक मंत्री पद पर चिपके बैठे हैं।
ज़ाकिर नाइक को एक झूटी ख़बर के आधार पर देशद्रोही तक कह डाला। और कुछ तथाकथित देशभक्त सड़क पर उतर कर देशभक्ति का प्रमाण देने लगे, लेकिन मुसलिम मुक्त भारत का नारा देने वाली "महान, सुशील, शालीन ओर भद्र" साधवी जी अब तक सच्ची देशभक्त बनी बैठी हैं। देशभक्ति का हाल यह है कि एक निर्दोष व्यक्ति के सिर काट कर लाने पर इसने 50 लाख की राशि घोषित किया है। लेकिन मीडिया वालों की मजाल नहीं कि उस पर कोई सठीक ख़बर बनाएं।
यह तो मात्र उदाहरण है, वरना पता नहीं कितने भोगी हैं जो योगी के नाम पर कलंक हैं, कितने तथाकथित समाजसेवक हैं जो समाज को लूट रहे हैं। कितने पंडित, मुल्ला और अन्य धर्मगुरु हैं जो धर्म के नाम पर अधर्म को बढ़ावा दे रहे हैं।
और कहीं न कहीं से यह सब इस तानाशाही से जुड़े हुए हैं।
ज्यादा बोलना खतरे से खाली नहीं। इस कलम को अभी बहुत कुछ लिखना है। इस लिए इसे सुरक्षित रखना भी अवश्य है। आप समझदार हैं। खुदै समझ जाएंगे।
😜
ज़फ़र शेरशाबादी
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