किसी भी देश की सेना के जवान ही देश के सच्चे रक्षक होते हैं, इसी लिए यह मानना होगा कि सेना पर हमला देश पर हमला करने के समान है। यदि कोई एेसा करता है तो उसे देश द्रोही घोषित करने की आवश्यकता ही नहीं है। ना ही किसी न्यायालय के फ़रमान की आवश्यकता। वह निःसंकोच व निःसंदेह देश का ग़द्दार कहलाएगा।
लेकिन यह सच है कि श्रद्धा के साथ साथ यह भी मानना होगा कि देश के इन रक्षकों के बीच कुछ एेसे तत्व अवश्य हैं जो इस पवित्र स्थान पर कालिख पोतने का काम करते हैं। अौर कोई माने या ना माने एेसे तत्व हर जगह कुछ ना कुछ मात्रा में अवश्य पाए जाते हैं।
ना तो मैं कन्हैया का सेना के जवानों पर दिया गया बयान सुना हूं अौर ना ही कन्हैया का अंधभक्त हूं! पर यह अवश्य कहूंगा कि इस कन्हैया के बहाने बहुत सारे लोग अपना भाग्य जगाने में जुट गए हैं। हर कोई इस विषय को कैश करना चाहता है।
एक देश भक्त वकील निकला, जिस ने न्याय के मंदिर पर ही कानून को हाथ में लेकर देश के न्याय प्रणाली पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने की कोशिश करने लगा। फिर देश के अलग अलग क्षेत्रों से नए नए देशभक्तों की आंख खुली, मानो जैसे सपना सच करने का स्वर्ण अवसर आगया हो। बस अब क्या था कन्हैया नामक उस देशद्रोही की ईंट से ईंट बजाने के लिए हर प्रकार के जतन होने लगे। कोई डिबेट के दंगल में चुनौती देकर अपनी देशभक्ति का नमूना दिखा रहा है, तो कोई उसकी ज़ुबान काटने पर इनाम घोषित करके अपने देशभक्ति का कर्तव्य निभा रहा है। ग़ज़ब तो ये ये है कि उसकी गरदन काटने पर भी इनाम की घोषणा करने वाले सच्चे देशभक्त बन गए।
मुझे यह समझ में नहीं आता है कि जब देश का चालक अौर प्रधान सेवक सेना को नीचा दिखा रहा था तो यह देशभक्त कि गुफा में छिपे थे? राष्ट्रपिता के क़ातिल गद्दार घोडसे के पुजारी खुले आम बापू का, देश के ध्वज का अौर राष्ट्रगान का अपमान कर रहे थे तो यह देश भक्ती क्या मर गई थी?
बस अब क्या कहूं यहां पर सच बोल कर ज़ुबान नहीं कटवानी है। जियो अंधभक्तो, अोहह सॉरी देशभक्तो।
जय हिंद।
ज़फ़र शेरशाबादी
कटिहार
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